योग कमेंटरी | मैं दिव्य दर्शनीय मूर्त आत्मा हूँ | I’m a divine idol of beauty
मैं दिव्य दर्शनीय मूर्त आत्मा हूँ… दिव्य श्रृंगारों से सम्पन्न… सुशोभित
स्वयं भगवान ने मुझे दिव्यगुणों से सजाया है… रूहानी साजन बनकर
मेरे मस्तक पर आत्मिक स्मृति का तिलक है… गले में गुणों की माला है… चारों ओर गुणों की खुशबू फैल रही है
मेरे चेहरे पर हर्षितमुखता की लाली है… रूहानी मुस्कान है… अलौकिक सूरत है
मैं बहुत सुन्दर आत्मा हूँ… सम्पूर्ण पवित्र… सर्वगुण सम्पन्न हूँ
मेरे हाथों में परमात्म प्रेम की अंगूठी है… ईश्वरीय मर्यादाओं का कंगन है… हर कदम में पद्मों की कमाई है
मेरे चारों ओर पवित्रता का आभामण्डल है… मैं साक्षात्कार मूर्त आत्मा हूँ
सिर पर विश्व कल्याण का ताज है… मैं डबल ताजधारी हूँ… अभी सो भविष्य में… ओम् शान्ति!
गीत: जगमग हो जगमग हो सतयुग का तेज…
और योग कमेंटरी:
- शान्ति,खुशी,सुुख,अलौकिक,हल्का,पवित्र,ज्ञान,शक्ति,शीतल,नम्र,वाह,नैन,सम्पर्क,भाव,कुण्ड,घर,निर्भय
- स्वमान,श्रेष्ठ,रॉयल,दिव्य,महान,स्वराज्य,भाग्य,गोपी,हंस,सार,दूत,ऋशी,ताज,माला,बालक,स्टुडेंट,हनुमान
- आत्मा(सितारा,बेदाग,हीरा,दीप,फूल,पंछी),रूह,दृष्टि,देहीअभिमानी,अशरीरी,प्रभाव,देहभान,नहीं,भयमुक्त
- प्यार,याद,दृष्टि,बातें,पार्ट,सूर्य,चुम्बक,नूर,मिलन,माँ,पिता,टीचर,गुरू,दोस्त,मुरली,संसार,जीवन,मैं-मेरा,ट्रस्टी
- स्वदर्शन(प्रिंस,देवता,दर्शनीय,पूज्य,शक्ति,ब्राह्मण,निमित्त,सेवा,समर्पित,लाइट,फरिश्ता,अवतार,घर,आस्मान)
- भोजन,सोना,न्यारा,थकावट,हॉस्पिटल,चाँद,बादल,होली,सुबह,बरसात,अंतरिक्ष,पानी,प्रकृति
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