The most new study! | Sakar Murli Churnings 05-08-2019

The most new study! | Sakar Murli Churnings 05-08-2019

सार

1. यह नई अनोखी बात है… जो स्वयं विदेही बाप (जो ज्ञान-सुख-शान्ति का सागर, सत बाप-टीचर-गुरु) हम रूहों-आत्माओं को पढ़ाते-सेवा करते, संगम पर ब्रह्मा तन में प्रवेश कर… हमारी सद्गति, अर्थात पावन-सतोप्रधान अमरलोक-स्वर्ग-विश्व का मालिक बनाने

2. मुख्य बात समझाते मन्मनाभव. अर्थात अपने को अशरीरी-आत्मा समझ बाबा को याद करना (जिससे सुख से भरपूर हो जाते), और सबको आत्मा भाई-भाई के रूप में देखना (गुणवान-निर्विकारी बनना, सबकी अच्छाई देखना, चार्ट से परिवर्तन करना)… इन सबका मुख्य आधार है पवित्र बनना

3. बाबा रोज़ समझाते, क्योंकि माया (आधा-कल्प के पुराने संस्कार) तुरन्त भुला देते… और हमें जीवन में ज्ञान को धारण कर नम्बर-वन बनना है

चिन्तन

तो चलिए आज सारा दिन… जबकि बाबा हमें इतनी wonderful अनोखी पढ़ाई पढ़ते, तो सदा इसी ज्ञान के चिन्तन और बाबा की यादों में मस्त रह… बहुत सहज कमजोरियों को स्वाहा कर दिव्गुण-सम्पन्न बनते-बनाते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!


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योग कमेंटरी | बाबा है खुदा दोस्त

योग कमेंटरी | बाबा है खुदा दोस्त

बाबा मेरा खुदा-दोस्त… सदा मेरे साथ रहते… खुशी-आनंद से भरपूर करते

मैं उनसे बात करता… वह मुझसे बात करते… हम सर्वश्रेष्ठ रूहानी फ्रेंड्स है

जब भी बाहर निकलता, कार्य आरम्भ करता… उसको बुलाता… जो सबकुछ सहज कर देता

उनके साथ की मीठी-मीठी यादें… मुझे पद्मापद्म भाग्यशाली मेहसूस कराती… सब को भी भाग्यवान बनाना है

हम दोनों फरिश्ते… ज्योति-बिन्दु आत्माएं… सब का कल्याण करते रहते… ओम् शान्ति!


और योग कमेंटरी:

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Becoming a shining example through our illustrious fortune! | Avyakt Murli Churnings 04-08-2019

Becoming a shining example through our illustrious fortune! | Avyakt Murli Churnings 04-08-2019

1. बाप का बनना अर्थात भाग्यवान बनना (भाग्य की लकीर लम्बी-श्रेष्ठ), अब सिर्फ इस भाग्य का अनुभव-खुशी-नशा चाहिए (जो चेहरे-चलन में दिखता)… हमारी प्राप्तियां अलौकिक-रूहानी-न्यारी-प्यारी है, जो:

  • दूर से ही आकर्षित करती
  • हमारी दृष्टि से रुहानी पर्सनैलिटी दिखती
  • हमारी वृत्ति से प्राप्ति का वायुमण्डल बनता
  • अप्राप्त आत्मा को प्राप्ति-उमंग, दिलशिकस्त को खुशी मिलती

तो इस महान भाग्य के स्मृति-स्वरूप बनना है

2. मधुबन अर्थात:

  • मधु (मधुर बनना-बनाना, हमारे बोल मोती जैसे हो, जिससे सबको प्रेरणा मिले, टेप करे)
  • बन (बेहद की वैराग्य वृत्ति, सबकुछ होते हुए भी, तब ही प्रेरणा मिलती)

इन दोनों के बैलेंस से, सदा आगे बढ़ते रहना है… हमारे उमंग का प्रभाव सब जगह पढता

3. जो हमने उमंग-उत्साह का संकल्प किया है, उसमे दृढ़ता भरने रोज उस संकल्प को दोहराना है, बाबा के सामने… तो वह सहज जीवन में आते, सफलता मिलती रहेंगी

4. ऎसा विशेषता-सम्पन्न ग्रुप बनाना है (ज्ञान, याद, शक्ति का), जिससे सबको प्रत्यक्ष प्रमाण-प्रूफ मिले, वाइब्रेशन फैले… इससे बोल से कई गुणा अधिक सेवा होती

सार

तो चलिए आज सारा दिन… भगवान् का बनने के सर्वश्रेष्ठ भाग्य के स्मृति-स्वरूप बन, सदा अपने चेहरे-चलन-दृष्टि-वृत्ती से अपने श्रेष्ठ भाग्य का अनुभव करते-कराते… मधुरता-वैराग्य के बैलेंस से हर पल आगे बढ़ते, सबके लिए प्रत्यक्ष प्रमाण बन, सबको आगे बढ़ाते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!


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Becoming Karmateet! | Avyakt Murli Churnings 18-12-87

Becoming Karmateet! | Avyakt Murli Churnings 18-12-87

1. बाबा देख रहे… हम कहाँ तक विदेही-कर्मातीत, बाप के समीप-समान बने हैं (तब ही साथ जा सकते)

2. कर्मातीत अर्थात:

  • कर्म में आते भी कर्म-बन्धन से न्यारे… कर्म के फल के वशीभूत-परवश-भटकते नहीं, लेकिन अथार्टी-मालिक कामना-मुक्त हो कर्मेंद्रीयां द्बारा कर्म कराने वाले… कर्मेंद्रीयों की आकर्षण आकर्षित न करे, सदा स्वराज्य अधिकारी (आंखों का उदाहरण)
  • देह-पदार्थ-सम्बन्ध के बन्धन से अतीत-न्यारे… अधीन होने से ही परेशान-दुःखी-उदास होते, सबकुछ होते भी खाली मेहसूस करते, चाहिए-चाहिए के कारण असन्तुष्ट, नाराज अर्थात राज को न जानने वाले… अधिकारी अर्थात न्यारा-प्यारा
  • पिछले कर्मों के हिसाब-किताब के बन्धन से भी मुक्त (तन का रोग, मन के संस्कार, सम्बन्ध में टक्कर, आदी)… उन्हें भी कर्मयोगी बन मुस्कराते हुए सूली से कांटा कर चूकत-भस्म करते, वर्णन-परेशान-चिल्लाना तो दूर की बात… यह होता
    • अशरीरी बनने से, जिससे देह-भान से परे जाते (बेहोशी के injection जैसे)
    • फोलो फादर-आज्ञाकारी बनने से दिल की दुआएँ प्राप्त करने से

3. यदि हिसाब-किताब से वा ड्रामा में कुछ नुकसान जैसी बातें आती… फिर भी धैर्यवत-अन्तर्मुखी हो देखने से उसमे भी फायदा दिखता… हम ऎसे फायदा देखने वाले होली-हंस है

4. साधारण आत्मा परिस्थिति में क्या-क्यों के चक्कर में आती… कर्मातीत आत्मा के लिए सबकुछ अच्छा होता (स्वयं-बाप-ड्रामा सब)… यह कैंची का कार्य करता, जो कर्मबन्धन कांटता… संगम की हर सेकण्ड कल्याणकारी है,

सार

तो चलिए आज सारा दिन… सदा अपने को देह में रहते विदेही आत्मा समझ, मालिक-अधिकारी बन कर्मेन्द्रियों का प्रयोग करते रहे… अशरीरी-पन वा फालो फादर के बल से सब परिस्थितियों में फायदा-कल्याण देखते… सबके लिए श्रेष्ठ उदाहरण बनते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!


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Becoming the best fairy! | Sakar Murli Churnings 03-08-2019

Becoming the best fairy! | Sakar Murli Churnings 03-08-2019

सार

1. हम अनादि रूप में शिवबाबा के बच्चें भाई-भाई है, और अभी संगम पर प्रजापिता ब्रह्मा द्बारा adopted बच्चें भाई-बहन है… यही श्रेष्ठ युक्ति है पवित्र बनने की, वा आंखों को सिविल बनाने की, पारसबुद्धि बनने की… फिर सतयुग में भी दृष्टि श्रेष्ठ रहेंगी, पतित-पावन बाप के स्थापन किए राम राज्य में सम्पूर्ण निर्विकारी रहते

2. हमें सर्वश्रेष्ठ परि-रत्न-फूल जरूर बनना है, स्कॉलरशिप लेने वाले कर्मातीत अष्ट-रत्न… जबकि हम पर बृहस्पति की दशा है, स्वयं वृक्षपति हमें पढ़ाते नई दुनिया के लिए, तो श्रेष्ठ पुरुषार्थ जरूर करना है

चिन्तन 

तो चलिए आज सारा दिन… जबकि बाबा हमें सर्वश्रेष्ठ परी बनाने आए है… तो सदा स्वयं को परि अर्थात फ़रिश्ता अर्थात ज्योति-बिन्दु आत्मा, लाइट के देह में अनुभव करते… परम-फरिश्ते बापदादा का हाथ-साथ सदा अनुभव करते-कराते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति! 


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Becoming a true moth! | (30th) Avyakt Murli Churnings 03-10-69

Becoming a true moth! | (30th) Avyakt Murli Churnings 03-10-69

1. शमा खुद हमारे परवाने-पन की पर्सेंटेज चेक करने आए हैं (4 बातें… स्नेही, समीप, सर्व सम्बन्धों का साथ, साहस)… अगर सम्पूर्ण परवाने नहीं, तो फेरी-चक्र लगाने वाले ही कहेंगे (अनेक संकल्पों-विघ्नों-कर्मों के चक्र में)… सम्पूर्ण समर्पण का ठप्पा यहां लगाने से ही वहां ऊंच पद मिलेगा… पाण्डव अर्थात ऊँची अव्यक्त स्थिति में गलना (सम्पूर्ण होना)

2. समर्पण अर्थात तन-मन-धन-सम्बंध सब अर्पण… मुख्य है मन का समर्पण अर्थात श्रीमत के विपरित एक संकल्प भी नहीं (व्यर्थ-विकल्प नहीं, सिर्फ बाबा के गुण-कर्तव्य- सम्बन्ध), तो तन-धन-सम्बंध सहज हो जाएँगा… क्या सोचना-बोलना-करना-देखना-सुनना, सब श्रीमत पर… जरा भी मनमत शूद्र-मत देह-अभिमान मिक्स नहीं पुराने-संस्कार वश… तो अव्यक्त कर्मातीत अवस्था एकरस रहेंगी (और कोई रस नहीं, बोझ भी नहीं)

3. परिवर्तन से घबराना नहीं, गहराई में जाने से घबराहट समाप्त हो जाती… वीन करने के लक्ष्य से नम्बर वन बनेंगे

4. बिन्दी (तिलक) लगाया है, बिन्दु की स्मृति दिलाने… कोई भी व्यर्थ संकल्प हो, तो उसे बिन्दी लगाने से बिन्दु बन जाएँगे… बाबा ने अभी निरोगी का और वहां राज्य-भाग्य का वरदान दे दिया है

सार

तो चलिए आज सारा दिन… सम्पूर्ण समर्पण का पाठ पक्का कर, हर पल श्रीमत अनुसार अपना हर कर्म करते… इसकी गहराई द्बारा व्यर्थ-घबराहट पर विन कर नम्बर-वन बनते-बनाने, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!


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Being true children! | Sakar Murli Churnings 02-08-2019

Being true children! | Sakar Murli Churnings 02-08-2019

सार

1. बाबा सत-चित्-आनंद स्वरूप बीजरूप सच्चा साहब है, जिसके बच्चें हम साहबजादे है… परमधाम में भी शान्ति में रहते, सतयुग में भी पवित्रता-सुख-शान्ति सम्पन्न सर्व वरदानों से भरपूर रहते, अब फिर वहां जाना है…

2. इसलिए जो पुराने हिसाब-किताब है, उसे निराकार बाप की प्यार-भरी यथार्थ याद से समाप्त करना है, फिर 5 तत्व-शरीर भी सतोप्रधान मिलते, हम लक्ष्मी-नारायण समान दिव्यगुण-सम्पन्न बन जाएँगे, फिर से…

3. सच्चाई-सफाई रख, पुरुषार्थ करना है, हम जैसा सुख कोई नहीं देखते

चिन्तन

तो चलिए आज सारा दिन… जबकि हम सच्चे साहब के बच्चे सर्वश्रेष्ठ साहबजादे है, तो सदा सच्चाई-सफाई का गुण धारण कर श्रेष्ठ ज्ञान-योग का पुरुषार्थ करते रहे, सबकुछ बाबा को बताते हुए… तो बहुत सहज-तुरंत सर्व खजानों से भरपूर, सर्व प्राप्ति सम्पन्न बनते-बनाते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!


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Making our ideals & acts equal! | कथनी-करनी समान | (29th) Avyakt Murli Churnings 28-09-69

Making our ideals & acts equal! | कथनी-करनी समान | (29th) Avyakt Murli Churnings 28-09-69

1. कोर्स का सार (वा सबसे शक्तिशाली पॉइंट) है कथनी-करनी-रहनी एक करना (जो भी हम कहते… हम BK है, सर्वशक्तिवान की सन्तान, आज्ञाकारी, मददगार, न्यारे, आदि)… इससे विघ्न एक सेकेण्ड में समाप्त होंगे, कर्मातीत बनते जाएँगे, उलाहना समाप्त हो अल्लाह-समान बन जाएँगे… नहीं तो निंदक से भी खौफनाक कहे जाएँगे, कोई पास नहीं आएँगा

2. सच्चाई अर्थात मन्सा-वाचा-कर्मणा एक समान… सफाई अर्थात संकल्प में जरा भी विकर्म-पुराने संस्कार का अन्श नहीं, तब ही सच्चाई आएंगी, बाबा-परिवार के प्रिय बनेंगे, नजर-वाणी-कर्म में अचल-परिपक्व… कर्म में भी सर्विसएबुल अर्थात हर सेकण्ड-संकल्प-शब्द-कर्म-चलन से सेवा, तब स्नेही बनेंगे

3. निश्चय (स्वयं-बाप-ज्ञान-परिवार पर) से ही विजय होती, जो कर्म में भी दिखता, संकल्प भी कमझोर नहीं होते… भट्टी अर्थात रूप-गुण-कर्तव्य सब परिवर्तन, इसे उमंग-निश्चय-स्नेह पर बाबा का सहयोग-मदद सदा रहता

4. हमार मस्तक पर निश्चयबुद्धि-नष्टोमोहा का तिलक है… बाबा ने हमें ज्ञान रत्नों से श्रृंगारा है, जो चमकते रहते, सबकी सेवा करते, तो इन्हें सदा धारण रखना है

5. हमारा पुरुषार्थ-परिवर्तन-हिम्मत-सेवा अब तेज है, अब वाणी के साथ चलन द्बारा डबल सेवा से डबल ताज की सफलता मिलेंगी… अव्यक्त रहकर फिर सेवा में आना है, फिर वापिस ऊपर

6. बलि चढने वाले को ईश्वरीय बल मिलता… स्वाहा सदा सुहागिन रहते, सदा आत्मा-बिन्दी याद रहती और मर्यादा का कंगन साथ रहता… सबको अविनाशी संग का रंग लगाना, यह जम्प कर आगे बढ़ने का समय है

7. एकरस रहने के लिए स्नेही-सर्विसएबुल बनना है, खुद बदलकर औरों को सिखाना है, अपने से भी आगे बढ़ाना है… निश्चयबुद्धी-नष्टोमोहा

सार

तो चलिए आज सारा दिन… सच्चाई-सफाई से अपनी कथनी-करनी समान कर निश्चयबुद्धि-विजयी स्थिति का अनुभव करते रहे… अव्यक्त स्थिति में स्थित रह अपनी चलन-संग से सबकी सेवा करते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!


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The call of time! | Sakar Murli Churnings 01-08-2019

The call of time! | Sakar Murli Churnings 01-08-2019

सार

भक्ति-दुःख का समय पूरा हुआ, अब घर जाना है इसी लिए बाप आए है संगम पर, तो (आत्मा समझ) याद द्बारा पवित्र जरूर बनना है… फिर सुखथाम में भी चले जाएंगे, इसलिए ऎसी खुशी-दिव्यगुण भी धारण करने है देवताओं जैसे (सभी विकार छोड़)… जब तक बाबा है, पूरा पुरुषार्थ करना है, ड्रामा पर पक्का रहकर, बाबा हमें कितनी अच्छी रीति सब समझाते

चिन्तन

जबकि अभी कल्याणकारी संगम का समय चल रहा, बाप साथ है… तो इस अमूल्य अवसर का पूरा लाभ ले, सदा बाबा की श्रीमत-दिनचर्या के हाथ में हाथ रख, हर कार्य के पहले उसे बुलाए, हर एक के संपर्क में आते बाबा को बीच में रख… सदा व्यर्थ से बचे, याद-सेवा की कमाई करते-कराते, सतयुग बनाते चले… ओम् शान्ति!


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Being a true trustee! | Avyakt Murli Revision 18-09-69

Being a true trustee! | Avyakt Murli Revision 18-09-69

1. आकृति के बदले अव्यक्त (आत्मा, जो मुख्य आकर्षण है) को देखने से आकर्षण-मूर्त बन जाएँगे, अब यही अव्यक्त सेवा करनी है… चित्र को न देख विचित्र (चेतन आत्मा) वा चरित्र को देखना है (तो चित्र के भान से परे रहेंगे)… स्वयं को शक्ति समझने से आसक्ति (देह-पदार्थ की) से बचे रहेंगे

2. सबकुछ समझते हुए भी सदा अव्यक्त नहीं रह सकते, क्योंकि देह आकर्षित कर लेता है… इसके लिए बीच में संयम रखना है, तो स्वयं और सर्वशक्तिमान याद रहेंगे (और समय), अलबेलेपन से बचे स्थिति अच्छी रहेंगी, तो सब अच्छा रहेगा… त्रिनेत्री-त्रिकालदर्शी-त्रिलोकीनाथ बन जाएँगे

3. जबकि हमने बाबा को कह दिया “मैं तेरा” (तन-मन-धन सहित, अर्थात सरेण्डर), आप जहां बिठाए… तो स्वतः मोहजीत बन जाएँगे, मन मन्मनाभव रहेगा, तन-धन भी ठीक रहेगा

सार

तो चलिए आज सारा दिन… सदा अपने को अव्यक्त शक्ति आत्मा समझ, सबकुछ बाबा का समझ, हर कर्म में बाबा-मर्यादाओं को बीच में रखे… तो सदा मन्मनाभव द्बारा श्रेष्ठ स्थिति अनुभव करते, सबकी सेवा करते, सतयुग बनाते रहे… ओम् शान्ति!


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